"बढ़ती उम्र"

"बढ़ती उम्र"
ए 'बढ़ती उम्र' तु कौन है और तु क्यूं रोया है?
अच्छा तो तु ' मां ' है तो बता तूने क्या खोया है?
क्या फिर  तेरे बच्चों की आपसी नफ़रतों ने मिलकर, तेरे ही बेबस प्यार को आंसू बनाकर,तेरा हीं आंचल भिंगोया है।
         ए ' बढ़ती उम्र ' तू कौन है और तू क्यूं रोया है?
अच्छा! तो तु ' जवां ' उम्र है,तो बता तूने क्या खोया है?
मन में ख्वाहिश - ए - मंज़िल लिए क्या कंधों पर नामुमकिन उनके प्यार को ढोया है,तो तूने आज रात फिर से तकिया भिंगोया है।।
         ए ' बढ़ी उम्र ' तु कौन है और तु क्यूं रोया है?
अच्छा!तो तु वो बुढ़िया दादी है ,तो बता ऐसा क्या खोया है जो स्वर्ग की सीढ़ियों को भी भिंगोया है, तो तेरे लाडले ने ताउम्र तेरे पति के पैसे, रिटायरमेंट और पेंशन अमांउट तक को खाया है
फ़िर भी तुझे दूसरों के बच्चों ने दफनाया है उफ़ अब समझ आया तूने क्यूं स्वर्ग की सीढ़ियों को भिंगोया है।
        ए 'बढ़ती उम्र ' तु कौन है और तु क्यूं रोया है? अच्छा तो तू वो बेटी है तो बता तूने ऐसा भी क्या खोया है जो अपने मासूम से रूक्सार को भी भिंगोया है,
क्या जिससे सातवीं की परीक्षा है मन लगाकर पढ़ ले बेटा, ये ना कहकर,
शादी के चर्चों का बोझ लादकर, तुझमें सुुई सा चुभोया है,
क्या तूने आज फिर से पड़ोस कि बड़ी मम्मी का आंचल भिंगोया है।।

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